घी सूं भरिया खूलड़ा, दूध दही अर छाछ।

अब न्ह दीखे गांव में, ल्यो किताबां बांच।।

धूणी तपता डोकरा, करता चर्चा राम।

दुख सुख आपस बांटता, ले भगवन को नाम।।

रिस्तां में मीठास छै, अब भी भोळा गांव।

शहरी लेता फायदो, खेल'र धोखा दांव।।

घास पूस की झूंपड़ी, नीम खेजड़ी छांव।

राम-राम सा बोलता, संबोधन में गांव।।

बळदां सूं खेती नहीं, बची‘न कांकड़ ठोर।

कठै चरै गौमात अब, कब्जा च्यारूं ओर।।

पगडण्ड्या बूढी हुई, सुकड़ी गेल गढार।

अब ना पाळा चालता , गांवां में नर नार।।

सज धज पाणी लाव छी, पणघट पे रमझौळ।

अब गांवां में न्ह मिलै, भीड़ पटेलाँ पोळ।।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : जयसिंह आशावत
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