पउढि परहरियाह, आरँभ करि ऊपरि असुर।

देवि दुवार थियाह, वेनतियाइत बीसहथि॥

हे देवी! तू (योगनिद्रा के रूप में) शयन कर तथा निद्रा त्याग कर असुरों (आसुरी शक्तियों) पर युद्धारम्भ कर। हे बीस भुजाओं वाली! मैं इसी विनती के साथ तेरे द्वार पर आया हूँ।

स्रोत
  • पोथी : अचलदास खिची री वचनिका ,
  • सिरजक : शिवदास गाडण ,
  • संपादक : शम्भूसिंह मनोहर ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविधा प्रतिष्ठान, जोधपुर
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