महिषासुर जू माइ, मुर जण महिषासुर मरइ।

सुर छूटइ सुरराइ, वार तुहाळी वीसहथि॥

हे माँ! हे सुरेश्वरी! हे बीस भुजाओं वाली! जिस दुष्ट महिषासुर के अत्याचार से त्रिभुवनवासी मर रहे थे, वह महिषासुर, तेरे ही प्रहार से मारा गया, जिससे देवों को भी राहत मिली (अथवा, तेरे प्राकट्य से ही सुरराज इंद्र सहित देवतादि संकट-मुक्त हुए)।

स्रोत
  • पोथी : अचलदास खिची री वचनिका ,
  • सिरजक : शिवदास गाडण ,
  • संपादक : शम्भूसिंह मनोहर ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविधा प्रतिष्ठान, जोधपुर
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