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साइट: परिचय
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अंजस सोशल मीडिया
धीर धरें सुधरैं सकल
जान कवि
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धीर
धरें
सुधरैं
सकल,
ये
हूं
सुभट
कहंत।
जो
केहूं
भाजत
नहीं,
सो
जीवत
है
अंत॥
स्रोत
पोथी
: जान-ग्रंथावली, भाग-4
,
सिरजक
: जान कवि
,
संपादक
: वंदना सिंघवी
,
प्रकाशक
: राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर
,
संस्करण
: प्रथम