देवादास मन मैल की ऐसी जाणूं रीति।
खैंच खांच उपजै नहीं पय पाणी ज्यूं प्रीति।
मेल हुआ मेला रहै, कहूं तोहि रे मन्न।
ज्यूं बंसलोचन अर नीर कौ देवा एक हि तन्न॥