पापी-संतापी हरै, करै लोक-उद्धार।
सो नर इण संसार में, नारायण-अवतार॥1॥
जुग-जुग सूं घर पर बवै, जमना री जळधार।
पण पूठो आयो नहीं, नागर नन्दकुमार॥2॥
बादळ देख सुहावणो, बोलै वन में मोर।
नैणां रै आगै रमै, नटवर नन्दकिसोर॥3॥
गौरव-गिर सूं अवतरी, धर पर गंगा-धार।
तिरपत कर नर-लोक नैं, दूध में अेकाकार॥4॥
जण-जण मुख कीरत-कथा, दिन-दिन दूणो आध।
सुर-बाणी रो सेहरो, पंडत तो बस माघ॥5॥
शर्मा दशरथ रो सुजस, परतख पुन्न प्रकास।
पूठो राजस्थान में, उतर्यो भारत-व्यास॥6॥
आरज-कुल कीरत-कथा, सुर-सरिता उनमान।
प्रगटाई मरु-भोम में, दशरथ ज्ञान-निधान॥7॥
भाटी दुल्लो ऊजळो, जस लूट्यो अणभंग।
बदस्यावां बदलो लियो, रजपूती नैं रंग॥8॥
काव्य-कला संगीत रो, संगम रूप रसाल।
रच्यो ‘ख्याल’ चित चाव सूं, राणो नानूलाल॥9॥
दानी रो जस ऊजळो, पूरै जग री आस।
दध खारो धर पर पड़्यो, बादल उडै अकास॥10॥
समै पाय पलटै सकल, जग आचार-विचार।
आगै-पाछै अेकसी, कदे न जळ री धार॥11॥
पसरी पाणी पून में, नूई साल री प्रीत।
पण गावै अे लोगड़ा, गई साल रा गीत॥12॥
रितु बसंत रै मोद में, बिरछ करै सिणगार।
पण यो ठूंठ न पांगरै, ऊभो अेकाकार॥13॥
जहांगीर, शाहजहां, आगै आलमगीर।
अेक-अेक कर छोडगा, जगती री जागीर॥14॥
तखत बैठ करता सदा, कितरो घणो गुमान।
पण सोया चिर-नींद में, माटी रै उनमान॥15॥
पाणी में परवेस धर, अम्बर बीच विहार।
कळ जुग री करतूत नैं, सुख मानै संसार॥16॥
धन साथै कळजुग कर्यो, विद्या रो गँठजोड़।
पूग न पाई सासरै, पीहर दीन्यो छोड़॥17॥
राजनीति रै रोग में, फंसगो जन-साहीत।
दीठ पड़ै जद केतु री, दीपै ना आहीत॥18॥
नेताजी रै घर लग्यो, परजा रो दरबार।
वोटां री चिन्ता करै, सगळा ओहदैदार॥19॥
नेताजी मंत्री हुया, जण-जण मुख जयकार।
फिरै सुदामा बापड़ा, सिरी किसन रै लार॥20॥
वोटां री सरकार तो, करामात भरपूर।
जुग री निर्धनता करै, झाड़ो देयर दूर॥21॥
कर्मठ नेताजी करी, पूरण जुग री आस।
पोपां बाई रो नयो, लिखवायो इतिहास॥22॥
पंचां में उण दिन हुई, खासा खींचातांण।
नेता रै सनमान रो, कुण करसी भुगतांण॥23॥
न्याव रूप दे नौकरी, पुन्न लियो सरकार।
सुख सूं पूग्यो गांगलो, भवसागर रै पार॥24॥
घूस-फीस हथियार सूं, बळ बाधा रो चूर।
सरकारी नौकर हुवै, सो नर साचो सूर॥25॥
धवल केश, मुख ऊजळो, श्वेत सकल परिधानष
लाल बुझाकड़जी मिल्या, निरमल ग्यान-निधान॥26॥
लाल बुझाकड़जी खरा, समरथ ग्यान-निधान।
कवि भूंगरा रा घेसळा, अरथाया मतिमान॥27॥
जीमण में चूकै नहीं, तीर लगावै ताक।
पंडत पायो नाम-पद, भोजन-वीर लढाक॥28॥
होळी रै मोकै मिल्यो, सुरसत रो परसाद।
खाटा मीठा चरचरा, नाना भांत सुवाद॥29॥
लिछमी, दुरगा, सारदा, तीनूं तीन सुभाव।
किण ही भागी रै घरे, मिल प्रगटावै चाव॥30॥
आतां देवै मान अर, जातां करै जुंहार।
जद बाजै रस-राग में, उर-वीणा रा तार॥31॥
हाळी सगळा भूलगो, सारचा कारज गाढ।
आखर बूढै वैल नैं, दियो घरां सूं काढ॥32॥
बीड़ बिचाळै जाय, साथै सगला भायला।
अंग-अंग हरखाय, ‘कुरको डेको’ खेलता॥33॥
जौहड़ रै जळ मांय, ‘डुबक मींगणो’ खेलता।
पूठा आवै नांय, वै दिन अर बै भायला॥34॥
सांझ पड़्यां गोवाड़ में, मिल साईना-मीत।
गींडी टोरा’ खेलता, वै दिन आवै चीत॥35॥
कवि-सम्मेलन में सखी, अेक बडो संताप।
नायां री ज्यूं जान में, सगळा ठाकर आप॥36॥
विद्या रो पट्टो लियो, पोथी पढकर साठ।
चन्नण री चूंटी भली, गाडो भलो न काठ॥37॥
खोळै बेटो घाल कर, खासा करली भूल।
दीखत में ही ऊजळा, रोहीड़ै रा फूल॥38॥
गांव-गुवाड़ी छोड़कर, फर्यो नौकरी लार।
दोनू खोई बूबना, आदेस अर जुंहार॥39॥
वोटर मिलकर गांव रा, मेली करड़ी मांग।
किण-किण नैं समझाइवै, कूवै पड़गी भांग॥40॥
हथियारां री होड नैं, रोक न पावै कोय।
ज्यूं ज्यूं भीजै कामळी, त्यूं त्यूं भारी होय॥41॥
दादर-मोर सुहावणा, बोलै मधरा बोल।
चाव जगावै चित्त में, भरै भाव अणमोल॥42॥