बापो मत कह बखतसी! कांपत है केकाण।

एकर बापो फिर कह्यो, (तो)पमंग तजेला प्राण॥

स्रोत
  • पोथी : मध्यकालीन चारण काव्य ,
  • सिरजक : दलपत बारहठ ,
  • संपादक : जगमोहन सिंह परिहार ,
  • प्रकाशक : मयंक प्रकाशन, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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