बालपणै शादी करी, भटक गया मन मीत।

पढबो-लिखबो छूटगो, आयो लपेटै रीत॥

बेगा होगा टाबरा, सेहत गई पताळ।

आय जवानी पैल ही, हुयो जीव जंजाळ॥

मात पिता न्यारा हुया, कही कमाओ खाय।

भूत भविस की सोचतां, वर्तमान चलि जाय॥

दोरो होगो जीवणो, भूल गया सब गीत।

बालपणै शादी करी, भटक गया मन मीत॥

भैण भुवा का लाड सब, गयै कुआ कै पींद।

चार दिनां को चानणो, बणै जिंदाड़ै बींद॥

म्हे डूब्या सो भोत छै, मान मंजूरी खाय।

अब सरकारी रोक वै, रोक समाज लगाय॥

रीत रीत में लुट गई, होती जे मन प्रीत।

बालपणै शादी हुई, भटक गया मन मीत॥

बाल ब्याह अभिसाप छै, करो समाजी गाड़।

समय पाय शादी करो, बाळपणै नहिं लाड़॥

सतफेरा, सातूं वचन, करल्यो सत संकल्प।

बाल ब्याह नैं टाळणो, करल्यो काया कल्प॥

रीत पुराणी भूलियो, देख जमाना गीत।

बालपणै शादी हुई, भटक गया मन मीत॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : बाबूलाल शर्मा ‘बौहरा’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि शोध संस्थान (राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़)
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