बिरहानल जेतन जरे, कछु रह्यो ता मांहि।

ठौर ठौर जौ चीरिये, तौरत निकसत नांहि॥

स्रोत
  • पोथी : जान-ग्रंथावली, भाग-4 ,
  • सिरजक : जान कवि ,
  • संपादक : वंदना सिंघवी ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम