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बांको खिण नह वीसरै
बांकीदास आशिया
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बांको
खिण
नह
वीसरै,
तद
निरमळ
हूं
तोय।
आया
चंगा
दीहड़ा,
गंगा
दरसण
होय॥
स्रोत
पोथी
: गंगालहरी
,
सिरजक
: बांकीदास आसिया
,
प्रकाशक
: राजस्थान राज्य प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राज.)