आज उनाळै अली, बैठै तूं गुलाब।

चैत मास पग चूमसी, आयां सागण आब॥

कोरी लाली वास बिन, रोहीड़ो मत सेय।

भंवरा डोकीज्यो भलो, बासंती रस लेय॥

भंवरां भागो इण समै, कमलां दीधो छेह।

रात पड़्यां बंधस्यो अठै, देखो दूजो गेह॥

भंवरां मोजां माणल्यो, कमळां री कळियांह।

सागण रासो रोपसी, सूरज आंथवियांह॥

पंछी मुड़ पाछोह, मोटा डूंगर जोय मत।

अंतर नह आछोह, सुरंगो लागै दूर सूं॥

सुण पंछी उड़ मोज सूं, पड़ियां दिन मत खोय।

सुख भल मान्यो पींजरै, सदा रहणो होय॥

सावण मास सुरंगियो, थळ थळ धासां थट्ट।

गिणियां दिन जासी गधा! चटपट करले चट्ट्॥

ऊमर सा खोई गधा, खूब हुयो तूं ख्वार।

कदर पाई तैं कदै, मरियो ढो ढो भार॥

गधिया तूं तो हो सदा, भार उठावण भाग।

भलो कुमाणस बाजियो, तेरै लारै लाग॥

आदर पातो तूं अमित, लेतां अपणी लाग।

गूंगा तू बाज्यो गधो, भाज पराये भाग॥

स्रोत
  • पोथी : बाळसाद ,
  • सिरजक : चन्द्रसिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : चांद जळेरी प्रकासन, जयपुर
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