नरहर समरतां नह बीते नाणों, लवसूं तिको न लेवै।
परनारी निरखै कर प्रीतां, दाम हजारां देवै॥
लेता नाम छिदाम न लागै, विगत जिका नह व्यापै।
आछी त्रिया देख अवरां री, सहसां माल समापै॥
तरसै देख अवर बनतावां, भूलै रघुवर भोळा।
जद करसी पिसताबो जम रा, दूत फिरैला दोळा॥
सुचिता होय भजो साहबनै, पामै सदगत प्राणी।
बेद पुराण कहै पर वामां, नरकां तणी निसाणी॥