मनरा महराण समापण मोजां, कापण दीनां तणा कुरंद।

दीजै किसो समोबड़ दूजो, पेखो चक्रत रहै पुरंद॥

भिडै सचेत वडाळा भारथ, चवड़ै खेत करै चित चोज।

अतुली बळ झाड़े असरां रो, खागां मार गमाड़ै खोज॥

पात सुजस अखियत पयंपै, दावत असमर वात दुवै।

जग में राम तुहाळै जोड़ै, हुवो कोई फेर हुवै॥

स्रोत
  • पोथी : रघुनाथरूपक गीतांरो ,
  • सिरजक : मंसाराम सेवग ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम