हालैं जिण अगर घूमता हसती, ताता गयण झूमता तुरंग।

पैदल प्रबल रथां ह्रदपंगी, चतुरंगी अत फौज सुचंग॥

सिंघासण चढ़णैं नर आसण, सासण सह मानै संसार।

खतम खुसी अनखूट खजानां, निरमळ चंद मुखी ग्रह नार॥

सुजस आठ दिसां सरसावैं, आठ दिसां खावै अरिताप।

परखत ही दीसै रे प्राणी, पिरभू भजन तणों परताप॥

स्रोत
  • पोथी : रघुनाथरूपक गीतांरो ,
  • सिरजक : मंसाराम सेवग ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम