कर जांणौ तौ कोई भलाई कीजौ,
लाभ जनम रौ लीजौ लोय।
पुरखां दो दिन तणा प्रांमणा,
किण सूं मती बिगाड़ौ कोय॥
जाणौ छै जाणौ छै जाणौ,
समझौ भीतर होय सयांन।
बे दिन काज जहर क्यूं बोलौ
मरदां दूर तणां मिजमान॥
इम इम करतां जावै ऊमर
परमै काल परार क पौर।
आपां बात करां अवरां री,
आपां री करसी कोई और॥
गरवा होय हरी गुण गावौ,
छीलर जेम म दाखौ छेह।
आज क काल पयाणौ ओपा
दिहड़ा गया सु ताळी देह॥
यदि तुम में कुछ करने की क्षमता है तो सबका हित-साधन करो। यही जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि है। प्रियजनो, इस दुनिया में हम मात्र दो दिन के मेहमान हैं। अतः किसी के साथ दुर्व्यवहार मत करो॥1॥
यदि अपने अन्तर में कुछ भी विवेक है तो इस तथ्य को अच्छी तरह समझ लो कि इस दुनिया से हमें निश्चय ही एक दिन चले जाना है। अतः दो दिन की इस छोटी-सी ज़िन्दगी में विष-भरे वचन क्यों बोलते हो? प्रियजनो, तुम तो इस दुनिया में अतिथि की भाँति हो। न जाने तुम्हारी अगली मंज़िल कितनी दूर होगी?॥2॥
आयु के ये दिन चुटकी बजाते-बजाते ही बीत गये। कल और परसों, पर साल और परार साल गिनते-गिनते ही आयु समाप्त हो गयी। आज जैसे हम दूसरे प्राणियों के सम्बंध में बातें करते हैं, वैसे ही लोग कल हमारी बातें और हम किस्से कहानी मात्र बन रह जायेंगे।॥3॥
अतः धीर गम्भीर होकर प्रेम पूर्वक प्रभु का गुणानुवाद करो। बरसाती गड्ढ़े की तरह अपना ओछापन मत झलकने दो। ओपा आढ़ा कहता है- प्रियजनो, हमें आज अथवा कल निश्चय ही इस दुनिया से प्रस्थान कर जाना है। आयु के ये दिवस बड़ी तीव्र गति से उसी तरह भागते हुए चले जा रहे हैं, जैसे कोई बच्चा खेल में अपने साथी के हाथ में ताली देकर इतनी तेज़ गति से भागा जाता है कि किसी के हाथ नहीं आता। ॥4॥