विदेही तणें दिवांण। ईस चाप धरे आण॥

तोड़वा अनेक तांण। ऊठिया करे अपांण॥

राज राव अनै रांण। पिनाक पै धरै पांण॥

हिले होय हीणमांन। दई वांण दई वांण॥

नेम धरियो नरेस। पहा को चढ़ै पेस॥

देख कहै सको देस। खत्री बीज गयो खेस॥

लहै बैण इतो लेस, ताण भूंह करे तेस॥

सालुळे अगेस सेस। राघवेस राघवेस॥

ऊससे घणै उछाह। चाप बांण धरे चाह॥

वाम हाथ लीध वाह। जीमणै कसीस जाह॥

तोड़ टूक करे ताह। आक दारू जूं अथाह॥

कोई करै सिराह। महावाह महावाह॥

तेज भूप देष तांम। निमे पाय सीस नांम॥

हेतवा सपूर हांम। वरमाल लियां वांम॥

पैराई करै प्रणांम। उमंगे मना अमाम॥

मिथ्थला कहै तमांम। सियाराम सियांराम॥

स्रोत
  • पोथी : रघुनाथरूपक गीतांरो ,
  • सिरजक : मंसाराम सेवग ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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