बन बैठो भलां चढ़ो गिर-बदरी, धरा भेष के धारो।

चित नँह लग्यो राम रै चरणां, नहँ जब लोग निसतारो॥

प्रीति करै तीरथ रै ऊपर, मोज दिय मनमांनी।

तक्यो मनहर पग जिंहताई, पार उतरे प्रानी॥

कर विधान करवत ले कासी, ले व्रजरेणूं लेटै।

पग्यो दिल प्रभु रै पद पंकज, भिसत त्यांतिक भेटै॥

भैरव देव अदेव भलांई, निरखो फिर फिर नैनां।

मुगत तणीं साता रो मालक, हरि बिन दाता है नां॥

स्रोत
  • पोथी : रघुनाथरूपक गीतांरो ,
  • सिरजक : मंसाराम सेवग ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम