तन अरठ अनोखौ रचियौ त्रीकम
आयुस बळ जळ भरियौ आंण,
माळ अहरनिस तिण में मेल्ही,
जिण बांधी घड़ियां स्रबजाण॥
ताता दुय धोरी जोतरिया,
भमर उजळ जुग पाख भलाह।
विध-विध जीह पाटळी वाजै,
उण रा खेडू आप अलाह॥
हर इक जीव घालियौ हाळी,
बास सदा जिण मांह बसै।
परठण कज रोटी कपड़ा री,
जिकौ कमावै भोग जिसै॥
कीन्ह कुखेत सुखेत क्यारियां,
पाप पुन्न तर क़हर पियै।
फाळ फलै सुख दुख दोनूं फळ,
लागौ हाळी स्वाद लियै॥
खुस व्है रहै जठा लग खेड़ै,
निठी आय बळ घटियौ नीर।
जम किंकर नै हुकम हुवै जद,
बीखोरै अरहठ बळवीर॥
कूटै बाळै लोग कबाड़ी,
खिणयक मांह उडावै खाक।
औ अरहठ नै औ हिज हाळी,
लाभै नहीं रुप्पयां लाख॥
इण कारण कर भजन ‘ओपला’
महा अमट थट अरठ मिळै।
काळ व्याळ व्यापै नहं कांठै,
ठळ रिण जांमण मरण टळै॥
हे त्रिविक्रम, आपने इस मानव देह रूपी अरहट की कैसी अद्भुत रचना की है। कुएँ की जलराशि के सदृश ही आप इस शरीर में आयुर्बल का समावेश कर देते हैं। कुएँ से पानी निकालने के लिये उस पर लगे रहँट (काल चक्र) पर जैसे चक्राकार माला (माळ) बँधी रहती है, उसके अनुरूप ही रात्रि और दिवस रूपी माला आपने इस शरीर में अदृश्य रूप से प्रविष्ट कर दी है। रहँट पर रखी हुई माळ पर जैसे मिट्टी के बने जल-पात्र (घड़लियाँ) बँधी रहती हैं, उसी प्रकार हे सर्वज्ञ आपने मनुष्य की आयुष्य के घड़ी-पल भी निर्धारित कर दिये हैं॥1॥
आपने इस रहँट रूपी काल-चक्र को चलाने के लिए कृष्ण और शुक्ल पक्ष रूपी श्याम और श्वेत रंग के अत्यन्त वेग से चलने वाले दो बैलों को जोत दिया है। ये दोनो बैल अबाध गति से निरंतर रहँट को चलाते रहते हैं। रहँट पर लगी पाटली (लकड़ी का लम्बा यंत्र जो रहँट के चलने के साथ उठता-गिरता रहता है और साथ ही ब्रेक का काम भी करता है) से निरंतर लय-युक्त मधुर ध्वनि निकलती है, जैसे कि मनुष्य की जिह्वा से शब्दोच्चारण। हे अल्लाह, इस रहँट को हाँकने वाले (क्षेत्रज्ञ) स्वयं आप ही हो॥2॥
परमात्मा ने कुएँ पर खेती का सारा काम करने के लिए जीव रूपी हाली को नियत कर दिया। वह सदा इस कुएँ पर ही रहकर काम करता है। उस हाली की मेहनत मजदूरी के स्वरूप में ‘हालीपना’ भी तय कर दिया। इसके अनुसार रोटी एवं कपड़े के अतिरिक्त यह निश्चत हुआ कि जैसी कमाई हाली करेगा, उस के अनुरूप ही फसल का भाग भी उसे मिलता रहेगा॥3॥
हाली ने अरहट की भूमि पर शुभ अथवा अशुभ कर्म की अलग-अलग क्यारियाँ बनायीं और उन्हें पुण्य अथवा पाप रूपी जल से अभिसिंचित किया। इस से सुख अथवा दुःख की फसल पक कर तैयार हुई। इस प्रकार यह हाली (जीवात्मा) अपनी कमाई (कर्म) के सुख-दुःख को ही आजन्म भोगता रहता है॥4॥
जब तक परमेश्वर की कृपा-दृष्टि जीवात्मा पर बनी रही, वे इस शरीर रूपी अरहट के बराबर चलाते रहे। लेकिन जैसे ही कुएँ (शरीर) में जल-राशि (आयुर्बल) निश्शेष, हुई, अन्तर्यामी ने अपने सेवक यमदूत को आदेश दिया कि इस खेल को अब यहीं समाप्त करो। आज्ञा सुनते ही यमदूतों ने तत्काल इस शरीर रूपी रहँट के कबाड़े को उखाड़ कर इधर-उधर बिखेर दिया॥5॥
तदनंतर, चैतन्य-विहीन उस शरीर को लोग अग्नि में जला देते हैं और क्षण भर में ही वह निरी राख की ढेरी बन कर रह जाता है। इसके पश्चात्, यानी मृत्योपरांत, अरहट रूपी यह शरीर और हाली रूपी जीवात्मा लाख प्रयत्न करने पर भी पुनः नहीं मिल सकते॥6॥
ओपा आढ़ा कहता है- हे प्यारे जीव, इन सारी बातों पर अच्छी तरह सोच विचार कर तुम अनन्य भाव से केवल परमेश्वर की भक्ति करो। इससे तुम्हें शाश्वत जल-राशि से परिपूर्ण ऐसा अरहट मिलेगा कि इस जीवात्मा को न काल रूपी सर्प-दंश का भय रहेगा और न जन्म-मरण के बंधन ही शेष रहेंगे यानी तुम सदा के लिये जीवन-मुक्त हो जाओगे॥7॥