बसू मांस कादम मचो असत परवत वणे,

रुधिर मिल सरतपत हुओ रातो।

अजोध्यानाथ दसमाथ रावण अडग,

महा बे ओर भाराथ मातो॥

बरंगां राळ वरमाळ सूरा बेरैं,

त्रिपत पंखाल दिल खुले ताळा।

सबल पड भार सिर तणवै, अहेसुर,

महेसुर बणावै मुंड माळा॥

कटार्यां सरांलग सेल खंजर करद,

अंग कट जरद पडिया अथाहां।

जोध सुर असुर बे सरोवर जूटिया,

बरोबर करैं सारीख वाहां॥

सीस दस झड़ै धनुधार रै सायकां,

हेर कप भाल अणपार हरषे

वसू सारी सुजस पयंपै सुबाणां,

विमाणां बैठ सुर सुमन बरसे॥

स्रोत
  • पोथी : रघुनाथरूपक गीतांरो ,
  • सिरजक : मंसाराम सेवग ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम