छके जोम सूं जाय जमराण सा छेड़िया,

लड़े अरि रेड़िया खेध लागां।

भिड़े भाराथ अणपार दल भांजिया,

वीर भागो नहीं सारवागां॥

दुझल जिण भुजां बलहूंत आठूं दिसां,

लंघ सामंद कीधी लड़ाई।

जीत लीधी जमी कठैथी जेणरी,

पराजै हुई नँह फतै पाई॥

प्रबल सुर असुर जिण लगाया पागडै,

जिको खळ चांपड़ैं खेत जारां।

पाड़ियो राम दसकंठ पीठांण में,

सबद जै जै हुआ लोक सारां॥

स्रोत
  • पोथी : रघुनाथरूपक गीतांरो ,
  • सिरजक : मंसाराम सेवग ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम