अवनी में जिके भलांई आया, करै सदा सुकरतरा काम।

दान सदा वित्त सारूं देवै, नित रसणा लेवै हरिनाम॥

गिणजै सद ज्यारी जिंदगाणी, उभै विरद धरियाँ अखत।

प्रारंभै दौलत पुन पाणां, पुणैं सुवाणां सीतपत॥

धन वे पुरुष बड़ा पणधारी, खलक सिरोमण सुजस खटै।

उमगे दान ऊधमैं आचां, राम राम मुख हूंत रटै॥

देह जिकण बातां अै दोई, तिके सदाई तीखा।

बीजा जड जंगम वसुधा रा सारा जीव सरीखा॥

स्रोत
  • पोथी : रघुनाथरूपक गीतांरो ,
  • सिरजक : मंसाराम सेवग ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम