अठी राम रा सुभड़ नैं सुभड़ रावण उठी,

लंक रे जोरवर खेत लड़वा।

तीर सेलां छूरां झींक तरवारियां,

बाजिया बिनै ही रंभ-वरबा॥

उडै पग हाथ किरका हुवै अंग रा,

बहै रत जेम सावण बहाळा।

आप आपो बरी जोयनै आड़ियाँ,

लड़ै रिण भलाभलां निराताळा॥

तहक नीसांण गिरवांण हरखांण तन,

चिंता सरसाण रँभगाण चाळै।

निडर रिषरांण गणपाण बीणा नचै,

भांण रथ तांण घमसांण भाळै॥

हुणे कुंभेणसा जोधहर श्रीहथां,

करै कुंण तेण परमांण काया।

जगत सारो अंजू साखदे जिणक री,

खोपरी गुळेचा भीम खाया॥

स्रोत
  • पोथी : रघुनाथरूपक गीतांरो ,
  • सिरजक : मंसाराम सेवग ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम