दिलड़ा! समझ रे सगळो जग दाखै, पछै घणो पिछतासी।

पुरष जनम कद तू पामेला गुण कद हरि रा गासी॥

मात-पिता बँधव दौलत-मद, सुत त्रिय जोड़, सँधाणो।

मायारा आडंबर माँहैं, बंदा! केम बँधाणो॥

समुझै क्यू अजूं समझाऊं, भूल मती हिव भाया।

दौडे ऊमर चटका देती, छित जिम बादळ छाया॥

सौवै खाय करै नहं सुकृत, खोवै दीह खलीता।

प्रीत करै सिमरे सीतापत, जिके जमारो जीता॥

स्रोत
  • पोथी : रघुनाथरूपक गीतांरो ,
  • सिरजक : मंसाराम सेवग ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम