आयो इंगरेज मुलक रै ऊपर, आहंस लीधा खैंचि उरा।

धणियां मरे दीधी धरती, धणियां ऊभां गई धरा॥

फौजां देख कीधी फौजां, दोयण किया खळा डळा।

खवां खांच चूड़ै खावंद रै, उणहिज चूड़ै गई यळा॥

छत्रपतियां लागी नंह छांणत, गढ़पतियां धर परी गुमी।

बळ नंह कियो बापड़ा बोतां, जोतां जोतां गई जमी॥

दुय चत्रमास बादियो दिखणी, भोम गई सो लिखत भवेस।

पूगो नहीं चाकरी पकड़ी, दीधो नहीं मरैठौं देस॥

बजियो भलो भरतपुर वाळो, गाजै गजर धजर नभ गोम।

पहिलां सिर साहब रो पड़ियो, भड़ ऊभै नंह दीधी भोम॥

महि जातां चींचातां महिळा, दुय मरण तणां अवसांण।

राखो रे किहिंक रजपूती, मरद हिंदू कै मुसलमांण॥

पुर जोधांण उदैपुर जैपुर, पहु थांरा खूटा परियांण।

आंकै गई आवसी आंकै, बांकै आसल किया बखांण॥

कवि बाँकीदास आशिया इस गीत में तत्कालीन राजपूताने के शाशकों को सचेत करते हुए कहते है कि अंग्रेज इस देश के ऊपर चढ़कर गये हैं तथा उन्होंने सरे पराक्रमियों को अपनी और खिंच लिया है अर्थात वश में कर लिया है। प्राचीन काल में तो राजाओं ने मरकर भी अपनी धरती नहीं जाने दी परन्तु बड़े शर्म की बात है कि अभी भूमि के स्वामियों के जीते जी भूमि उनके हाथों से निकल कर किसी और के अधिकार में चली गयी है।1

शत्रुओं की सेना को देखकर भी किसी ने सेना लेकर सामना नहीं किया और शत्रुओं का नाश ही किया। यह पृथ्वी तो पूर्व पति के संपूर्ण चूड़े सहित दूसरों के अधिकार में चली गई। (राजस्थान में ऐसी रीत है कि औरत जब अपने पहले पति को छोड़कर नाता करती है तो पूर्व पति का चूड़ा उतारकर, नए स्वामी का चूड़ा धारण करती है। यहाँ कवि पृथ्वी को औरत कि उपमा देते हुए कह रहा है कि पृथ्वी रूपी स्त्री राजाओं रूपी पूर्व पति के चूड़े सहित किसी और के घर चली गयी है।)2

राजाओं को यह बात बुरी मालूम नहीं हुई। किले के स्वामियों की भी पृथ्वी चली गई। इन बेचारे लोगों ने तो पृथ्वी को डुबोते हुए, खोते हुए जरा भी पराक्रम नहीं दिखाया। इनके देखते-देखते इनकी पृथ्वी चली गई।3

दो चातुर्मास (आठ मास) तक दक्षिण-देश का राजा लड़ा, यदि उसकी पृथ्वी चली गई तो यह होनहार था। उसने तो दासता अंगीकार की ही नहीं और महाराष्ट्र देश ही दिया।4

भरतपुर का राजा भी अच्छा लड़ा। उसने तोपों की गर्जना से आकाश और पृथ्वी दोनों को भर दिया। प्रथम स्वामी का सिर कटकर गिर गया किंतु एक भी योद्धा के खड़े रहते पृथ्वी नहीं जाने दी।5

संसार में पुरुष के लिये ये दो समय ही मृत्यु के हैं एक तो जब उनकी जमीन जाती हो और दूसरे जब उनकी स्त्री अन्य के अधिकार में फँसकर असहाय अवस्था में चिल्लाती हो। कवि कहता है कि अरे! कोई तो वीर चाहे वो हिंदू हो या मुसलमान, अपनी वीरता दिखाओ राजपूती (क्षत्रिय धर्म) रखो।6

जोधपुर,उदयपुर और जयपुर वाले राजाओं! तुम्हारा तो यह वंश ही समाप्त हो चला। यह पृथ्वी भवितव्यता से ही गई है और अब होनहार होगा तभी यह आवेगी (स्वतंत्र होगी)। बांकीदासजी कहते है की जो आज उन पर (भरतपुर , मराठा आदि) बीत रही है वो कल आप लोगो पर भी बीतेगी अतः सचेत हो जाओ।7

स्रोत
  • पोथी : बांकीदास- ग्रंथावली ,
  • सिरजक : बांकीदास ,
  • संपादक : चंद्रमौलि सिंह ,
  • प्रकाशक : इंडियन सोसायटी फॉर एजुकेशनल इनोवेशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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