पुरख होय असलीक, जाण्य क असत न भाखै।
करै सुगुर की सेव, नीच ता आपो राखै।
पापां ता पूठो सीर, धरम की सदा दीलासा।
वह वरत अनहंत, अति साहेब की आसा।
मध्यम सेती न मीलै, उतिम की संगति रहै।
वील्ह कहै सत सुर नरां, अता वीड़द असली वहै॥
जो सच्चा पुरुष है, वह जानबूझकर असत्य बोलता नहीं है। वह सतगुरु की सेवा करता है और दुर्जनों से दूर रहता है। पापों से मुख मोड़ता है, धर्म की हृदय में आशा रखता है, वह सत्य पर चलता है और अंत में विष्णु की आशा करता है। जो बुरे लोगों की संगत न करे, उत्तम के साथ रहें, कवि विल्होजी कहते हैं कि ऐसे सत्यवादी देवपुरुष इसी तरह से वास्तविक ज्ञान के प्रति ही अपना जीवन यापन करता है।