वैर वध्यो हिज बुरौ, अधिक उपद्रो व्है आगें।

वध्यो बुरौ वासदे, लाय जिण सेती लागें।

व्याधि वधि हिज बुरी, छिजैं देही जिण छिण छिण।

वाद बध्यो हिज बुरौ, खसा खेधौ व्हैं खिण खिण।

वधियो वुरो सगळौ विसन, धर्मसीख धरिजो धुरा।

करिज्यो विवेक ज्युं व्है कुसल, ववा पांच वधिया बुरा॥

स्रोत
  • पोथी : धर्मवर्द्धन ग्रंथावली ,
  • सिरजक : धर्मवर्द्धन ,
  • संपादक : अगरचंद नाहटा ,
  • प्रकाशक : सादूल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट, बीकानेर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम