वारद विद्युत वरण, पीत अरु धरण नीलपट।

तरह मदन रत तणी, देख दिल दरप जाय दट।

पत आलंबन प्रिया, प्रिया आलंबन पीव वर।

हेक प्राण दुय देह, प्रीत अणरेह परसपर।

नह हुई होवैं है नहीं, सो छब जोड़ समान की।

मिल वसो मंछ मन मंदिरा, जो श्री रघुवर जानकी॥

स्रोत
  • पोथी : रघुनाथरूपक गीतांरो ,
  • सिरजक : मंसाराम सेवग ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम