सिला सेज सूवणें, वळे वन धहगने वासा।
नगन गगन गुण मगन, अगनि जग ने अभ्यासा।
जटा धरै केई जूटा, मुंड के घुरड मुंडावै।
बहुली केइ बभूत, लेइ अंगे लपटावै।
जिण जिणैं रूढि झाली जिका, तपौ तपावौ कष्ट तन।
साच व्हैं मन्न धर्मसी सफळ, मन झूठै सहु झूठ मन॥