सीस सरग सात में, परग सातमें पयाळै।

अरणव सातूं उदर, विरछ रोमांच विचाळै।

नदी सहस नाड़ियां प्रगट परवत मसपूरज।

श्रुत दिस पवन उसास सकल लोयण ससि सूरज।

शिव सूँ उमंग पूछै सगत, इचरच अत आवत यहैं।

कहो मोहि प्रभु संत उर रात दिवस किणविध रहै॥

स्रोत
  • पोथी : रघुनाथरूपक गीतांरो ,
  • सिरजक : मंसाराम सेवग ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम