रात दिवस ढिग रहै, सहै वैराग समांना।
पट स्त्री परसै नांय, गरब सब तजै गुमांना।
धूल सिनांना धरै, करै नह निरमल काया।
अनफल तुच्छ अहार, मेटै सब इंद्री माया।
नरनार कांम परसै नहीं, वसै संग पण जूजुवा।
कव ‘चिमन’ सजै ऐसी क्रिया, हरवल्लभ वल्लभ हुआ॥