नमो साम सब सीस, राम रमतीत अजूंनी।
अखंड जोत परकार, वेद ऋषि गावै मूंनी।
आगम अगम अदृष्टि, दृष्टि आकार न आवै।
अपरमपार अपार, पार कोऊ नहिं पावै।
लघु विरघा तरुणा नहीं, रंग रूप नहिं रेख है।
सेवगराम की वंदना, संत निभावन टेक है॥