गुरु सेवा लहै भगति, जगत सब सीस निवावै।

उपजै ग्यान बैराग, राग कबु निकट आवै।

सत्य शील संतोष, गहै धीरज निज धारा।

खिम्या दया गंभीर, नेम प्रेमादिक सारा।

उर आनंद मंगल बधै, ऊणत रहै कोय है।

सेवग सतगुरु सेवंता, सब लछ प्रापत होय है॥

स्रोत
  • पोथी : श्री सेवगराम जी महाराज की अनुभव वाणी ,
  • सिरजक : संत सेवगराम जी महाराज ,
  • संपादक : भगवद्दास शास्त्री, अभयराज परमहंस ,
  • प्रकाशक : फतहराम गुरु मूलाराम, अहमदाबाद ,
  • संस्करण : प्रथम
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