गुरु किरपा मिल मोख, दोष तन सब तज जावै।
अनुभव निरमल होय, श्रूप सुध अपनों पावै।
अघ तिमिर मिट जाय, जगत सब मिथ्या भासै।
उदै होय विग्यान, एक अद्वैत प्रकासै।
सम दम स्वांत शरीर हुय, सिकल विकल मन छाड़ है।
सेवग सतगुरु सेवते, नेजा नांव सुगाड़ है॥