गुरु किरपा मिल मोख, दोष तन सब तज जावै।

अनुभव निरमल होय, श्रूप सुध अपनों पावै।

अघ तिमिर मिट जाय, जगत सब मिथ्या भासै।

उदै होय विग्यान, एक अद्वैत प्रकासै।

सम दम स्वांत शरीर हुय, सिकल विकल मन छाड़ है।

सेवग सतगुरु सेवते, नेजा नांव सुगाड़ है॥

स्रोत
  • पोथी : श्री सेवगराम जी महाराज की अनुभव वाणी ,
  • सिरजक : संत सेवगराम जी महाराज ,
  • संपादक : भगवद्दास शास्त्री, अभयराज परमहंस ,
  • प्रकाशक : फतहराम गुरु मूलाराम, अहमदाबाद ,
  • संस्करण : प्रथम
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