गादह ही जव चरै, दूध तोही भोग न लागै।
त्रंबा सुत अचर चरै तदपि ज पावन लागै।
छापा दीयै चंडाळ, तोही पग खोळे नव पीजै।
त्रिया रहित द्विज मिल्या तेन आभोष न लीजै।
किंकरै री हत जोअत भली, तोही अपावन खोळियो।
उदैराज तेण गीता बिचै कुळ जनम मांगे लीयो॥