नारद कहियो नाथ! अचल हूं तप कर आयो।
सुण ग्रववच, दे सीख बीच बन नगर बणायो।
जठै स्वयंबर जोय धीयवी मांहि नील धुज।
नृप कन्या रो नूर देख प्रभुकनै गयो दुज।
एम करो अरदास, हुवै हरि सो मुख महारो।
मुळक मुणै महाराज हुसी जो चाह तिहारो।
बांदरा तणो बणियो वदन, धरवीणा दरगह धसे।
संपेख रूप सगली सभा, हड़ हड़ हड़ हड़ हड़ हंसे॥