मिलतां मुहां मुंह, हेज हियै मिले हीसै।

पळ एक फेर्‌यां पूठ, नेह तिल मात दीसै।

आरीसा जिम आज, मीत बहुळा जग मांहे।

कलि चातक जिम कोइ, नेह राखैं निरवाहे।

मेह नै देखि पिउ पिउ मगन, पिउ पिउ कहै पर पूठ पिण।

कीजीयं मीत धर्मसी कहैं, गुणवंतौ कोइक गिण॥

स्रोत
  • पोथी : धर्मवर्द्धन ग्रंथावली ,
  • सिरजक : धर्मवर्द्धन ,
  • संपादक : अगरचंद नाहटा ,
  • प्रकाशक : सादूल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट, बीकानेर (राज.)