मिलतां मुहां मुंह, हेज हियै मिले हीसै।
पळ एक फेर्यां पूठ, नेह तिल मात न दीसै।
आरीसा जिम आज, मीत बहुळा जग मांहे।
कलि चातक जिम कोइ, नेह राखैं निरवाहे।
मेह नै देखि पिउ पिउ मगन, पिउ पिउ कहै पर पूठ पिण।
कीजीयं मीत धर्मसी कहैं, गुणवंतौ कोइक गिण॥