न्यात किसी मछगंध जास सुत व्यास कहाणां।

खत्र किसो कहि मेद जासु वांछै रायराणां।

रूप किसो कहि कांम जास संसार वखांणै।

भीच किसो इण इळा जिको जोधार आंणै।

वायस किसो कहि जोतिषि चिंत वांहण विरहण धरै।

उदैराज सदा गुण अरथीयै कहो वंस कासूं करै॥

स्रोत
  • पोथी : उदैराज बावनी (परंपरा भाग- 81) ,
  • सिरजक : उदैराज ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी,जोधपुर।
जुड़्योड़ा विसै