महंण मांण मारीच, प्रांण जांनकी जतंनह।
ग्रहे सरब निसाचरां, ग्रब गढ कणै जोर गह।
सुर अपार भै दुःख संघार, सिंगार मंदोवरि।
ग्रहां वंध दस ग्रीव कंध, ईन मंध भोग अरि।
दिसि खलां म्रग डंडक, सुवंनि रामं धनख सधीर।
हेकण हेकै महुरते, छूटै छूटा तीर॥
सीता विवोग पख तरणि, सोग सामंद सबंधह।
त्रिकूट धोम कपि सेन, वोम कुल भै दसकंधह।
सुर सराह असुरां, दाह संपाति सउडंण।
वरै रांम रांमण विरांम, कंमल खळ कप्पण।
पिनांक सझे माधव सु प्रभु, उर मारीच आरांणि।
मेनचरां अनि अंमरां, लग्गा लग्गै वांणि॥