मानव किसा जगि मझि जिके जगदीस न जांणै।
किसा तिके गुणवंत जिके वप आप वखांणै।
किसा तिके दे दातार जिके नर घृणा न अपै।
किसा तिके धर्मवंत जिके नारायण न थपै।
कहि हूत किसी वाटे नहि, सकजि किसो गजण सहै।
उदो किसो उदैराज कहै, जिण अधारो आगै रहै॥