लीध ओट प्रहलाद, पिता तद कोप प्रगासे।

जिण रै हित जगदीस, भांज खंभ नरहर भासे।

हिरणाकुस नै हणै, निडर फाड़े उर नख्खे।

खळकाया रत खाळ, भरे डाचां पळ भख्खे।

आंतड़ा तास पहरे उवर, दूर कियो दुःख दास रो।

राख जै नेक आलम रटै, एक उणीरौ आसरो॥

स्रोत
  • पोथी : रघुनाथरूपक गीतांरो ,
  • सिरजक : मंसाराम सेवग ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम