करे कमळ काळकूट जहर जीरीयो जटाधर।
तदप नीत राजयट धर्यो, उतबंग निसाकर।
दवानळ वसि करे भाळ चख धर्यो विचाळै।
तदपि जटा विच गंग कन्ह लेहुं अलग न टाळै।
सबंरारि बाळि भसमर क्यों, तदप गवर पासल रहै।
करि जाणजै नहीं अरि दूबलो सूर चंद्र ऊदो कहै॥