झालि सत ज्यूं पति रहै सत विण ब्रत चालै।

संत कीयां सतोष रहै जगदीस विचाळै।

सत सिंघ एकलो निजर तळै सहस्त्र आंणै।

जोय सत विक्रम लछि क्रम जाति जांणै।

सत ग्रह सीस जगदे वदै सत नराँ टीको धरो।

उदैराज कहै सूरजमल एक सत अंगी करो॥

स्रोत
  • पोथी : उदैराज बावनी (परंपरा भाग- 81) ,
  • सिरजक : उदैराज ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी,जोधपुर।
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