जेथ नदी जळ बहळ, तेथ थळ विमल उलट्टै।

तिमर घोर अंधार, तेथ रिव किरण प्रगट्टै।

राव करीजै रंक, रंक सिर छत्र धरीजै।

‘अलू’ तास विसवास, आस कीजै सिमरीजै।

चख लहै अंध पंगो चरण, मौनी सिधाअंते वयण।

तम्ह करत कहा व्है क्रिसन, नारायण पंकज नयण॥

स्रोत
  • पोथी : सिद्ध अलूनाथ कविया ,
  • संपादक : फतहसिंह मानव ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकेदमी ,
  • संस्करण : प्रथम
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