जेण कंसासुर मारीयो, मध कीचक समदर मथै।

मुर हिरणाकुस हिरणाख, अंगज गंज उनथ नथै।

छळै बळि जिण छळै, भुज सहस भांजैवा।

करि रावण निरवंस, लंक भभीखण देवा।

एतला प्रवाड़ा तोरा अछै, काज भगतां कारणै।

वीनती वळ वळ विष्ण, त्रिकम वाहरां तारणै॥

स्रोत
  • पोथी : सिद्ध अलूनाथ कविया ,
  • सिरजक : सिद्ध अलूनाथ कविया ,
  • संपादक : फतहसिंह मानव ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकेदमी ,
  • संस्करण : प्रथम
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