छटा जटा फब मुकट विकट वीच विराजत।

श्रृंगी भृंगी रंग भुजंग सेली बिंब ब्राजत।

कुंडल करन उदोत चंद्रमंडळ जुग जोहित।

अरुन वसन सुच असन निरख सुरनर मन मोहित।

सोहत स्वरूप अदभूत अत तन वभूत उजळ वरन।

जग जयति जलंधरनाथ प्रभु सिध्देस्वर असरन सरन॥

जोति रूख विध रूप रूप अनरूप अनोपम।

निराकार साकार लेख निरलेप अगम गम।

गोप अगोप प्रकास वास गत कोउ पावै।

जथा सक्त परमांन भक्त जस तिन कौ गावै।

लहि भेद वेद इंद्राद नहिं महा जोग-निंद्रा धरन।

जग जयति जलंधरनाथ प्रभु सिध्देस्वर असरन सरन॥

जिन सब तीरथ करे हरे तिन अघ सब तन के।

जग्य दांन जिन करे सरे सब कारज मन के।

जिन कीने वृत्त नेम प्रेम निज पूरन पायौ।

जिन कीने श्रब धांम करन जो दरसन आयौ।

मद मोह सोक दरसत मिटत अखिल लोक तारन तरन।

जग जयति जलंधरनाथ प्रभु सिध्देस्वर असरन सरन॥

स्रोत
  • पोथी : नाथ चंद्रिका ,
  • सिरजक : उत्तमचंद भंडारी ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी, जोधपुर
जुड़्योड़ा विसै