जहाँ कुमति तहाँ सुमति, जाइ दुरजण ताइ सज्जण।

छोह मोह छंडीयै, ‘अलू’ मंडीयै निरंजण।

कालकूट तहाँ सुधा, जहाँ बोहित तहाँ सायर।

तिमिर घोर अंधार, मद्धि दरसै दैवायर।

मन गहर बहर चिंता मकरि, हरि अनंत चिंता हरै।

गुणमत्ति पत्ति जागत सकति, द्वादस षोडस हूव फरै॥

स्रोत
  • पोथी : सिद्ध अलूनाथ कविया ,
  • संपादक : फतहसिंह मानव ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकेदमी ,
  • संस्करण : प्रथम