घणां घाट लंयणां, नदी परवत नद नाळां।

वन है बेटा विकट, पंथ चालणों उपाळां।

कहर भूख काढ़णी, गिणे दुख किसा गुणीजै।

कहूँ बात यह कंवर श्रवण, बै भ्रात सुणीजै।

दंती बराह नाहर दनुज, सो तिण ठां रह साबता।

रे पुत्र घणी विध राखजौ जनक-सुतारा जाबता॥

स्रोत
  • पोथी : रघुनाथरूपक गीतांरो ,
  • सिरजक : मंसाराम सेवग ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम