घणां घाट लंयणां, नदी परवत नद नाळां।
वन है बेटा विकट, पंथ चालणों उपाळां।
कहर भूख काढ़णी, गिणे दुख किसा गुणीजै।
कहूँ बात यह कंवर श्रवण, बै भ्रात सुणीजै।
दंती बराह नाहर दनुज, सो तिण ठां रह साबता।
रे पुत्र घणी विध राखजौ जनक-सुतारा जाबता॥