घड़ी घड़ी घड़ियाल, प्रगट सद एम पुकारैं।

अवर भवैं ऊंघतां, जगिज्यो मनुष्य जमारै।

दुखिया रै सिर दंड, घड़ि घड़ि आयु घटंता।

काठ सिरै करवती, किती इक वार कटंता।

तिण हेत चेत चेतन चतुर, धर्मसीख सविसेस घर।

सहु बात सार संसार में, कोइक पर उपगार कर॥

स्रोत
  • पोथी : धर्मवर्द्धन ग्रंथावली ,
  • सिरजक : धर्मवर्द्धन ,
  • संपादक : अगरचंद नाहटा ,
  • प्रकाशक : सादूल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट, बीकानेर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम