गरथ तणैं गारवे, हुऔ गहिलौ विण होळी।
नेट करैं निबळरी ठेक हासी ठकठोळी।
मन ही मन जांणै मूढ़, मूळ ए किण री माया।
साच कहैं धर्मसीह, छती छवि वादळ छाया।
उळटी सुळट्ट सुळटी उळट, ए थिति आदि अनादिरी।
घडी माहि देखि अरहट्ट घड़ी, भरि ठाली ठाली भरी॥