गरथ तणैं गारवे, हुऔ गहिलौ विण होळी।

नेट करैं निबळरी ठेक हासी ठकठोळी।

मन ही मन जांणै मूढ़, मूळ किण री माया।

साच कहैं धर्मसीह, छती छवि वादळ छाया।

उळटी सुळट्ट सुळटी उळट, थिति आदि अनादिरी।

घडी माहि देखि अरहट्ट घड़ी, भरि ठाली ठाली भरी॥

स्रोत
  • पोथी : धर्मवर्द्धन ग्रंथावली ,
  • सिरजक : धर्मवर्द्धन ,
  • संपादक : अगरचंद नाहटा ,
  • प्रकाशक : सादूल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट, बीकानेर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम